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विमुद्रीकरण (Demonetisation): काले धन का खात्मा या सामूहिक लूट ??? हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और

विमुद्रीकरण (Demonetisation): काले धन का खात्मा या सामूहिक लूट 
सिर्फ कुछ के लिए सुखद ,कमजोर वर्ग के लिए दुखद था 










8 नवम्बर  ,2016 की वह आधी रात जिससे न जाने कितने लोगों का रोजगार उजाड़ दिया न जाने कितने देशवासी बेरोजगार हो गए,बर्बाद हो गए ,कितने ही छोटे और मझोले कल कारखाने ,कंपनियां बंद हो गयीं ,हजारों लाखो लोगों की रोजी रोटी छिन गयी और देश के अनगिनत युवाओं को घर वापसी करनी पड़ी | कितनी ही महिलायें और पुरुष लोग पैसे की जरूरतों के चलते बैंक के बाहर बैंकों की लाइन में मौत को प्राप्त हो गए ,ज़िंदगियाँ हार गए |  क्या आपको याद है या आप भूल गए ?परन्तु फिर भी विमुद्रीकरण को अच्छा बताया गया । हद तो तब हो गई जब पंजाब के लखविंदर सिंह की मांग पर आरटीआई को पीएमओ कार्यालय से देशहित में न होने का कहकर , गोपनीय जानकारी कहकर सूचना का जवाब ही नहीं दिया गया। दिलचस्प यह रहा कि  उस समय उत्तर प्रदेश में पंजाब के चुनाव होने थे और देश की सर्वोच्च सरकार वाली पार्टी की नजर भी उत्तर प्रदेश और पंजाब राज्यों पर जीत की पताका फहराने की थी। वह इस  में उत्तर प्रदेश राज्य में कामयाब भी हुईप्रश्न यह उठता है कि क्या इन चुनावों के मद्देनजर यह देखते हुए विपक्षी दलों और  पार्टियों का पैसा समाप्त करना चाणक्य नीति थी या वास्तव में ही आतंकवाद का सफाया करना या देश की संपदा को लूटने की एक सोची-समझी रणनीति थी।
       विमुद्रीकरण के तुरंत पश्चात मुख्यमंत्री दिल्ली अरविंद केजरीवाल को यह कहते हुए टीवी चैनलों पर सुना गया था कि यह वह कौन लोग हैं जिन्होंने  इस तारीख से 6 माह पूर्व में ही रुपयों की जमा दर विभिन्न राष्ट्रीय बैंकों में बढ़ा दी थी उस समय इतना रुपया जमा किया गया था कि जैसे देश के कुछ लोग जानते हो कि नोटबंदी नवंबर माह में होने वाली है दूसरी ओर भ्रष्टाचार की दूरी में पूरा बैंकिंग सिस्टम ही तब्दील हो गया था मैनेजर या यूं कहें कि बड़े अफसरों की तो जैसे चांदी ही निकल पड़ी थी उन्होंने 30 से 40% तक कमीशन लेकर  नोट बदलने का भ्रष्टाचार किया  उन्हें जैसे लाइसेंस सरकारी लाइसेंस मिल गया था | मध्यप्रदेश जहाँ बीजेपी की ही सरकार थी ,वहां की टकसाल (रूपए बनाने का कारखाना ) से तो वहीँ का कार्यरत कर्मचारी लगभग 90 लाख रुपये वहां तैनात सुरक्षा को भेद कर बहार ले गया था जिसकी जानकारी सिक्योरिटी सिस्टम को बहुत बाद में पता लगी, ऐसा कितनी बार हुआ होगा ? और राष्ट्र के पुनः निर्माण की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक ?
  क्या इस पक्ष की दूरदृष्टि से केंद्र सरकार अनजान थी या जानबूझकर नजरअंदाज कर रही थी? अगर केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर ही लगाम लगाना चाहती थी तो बैंक और वित्तीय संस्थायों  को भ्रष्टाचार से, जनता के लिए रोकने का इंतजाम , किसी भी तरीके से उन्होंने क्यों नहीं किया ?
काला काला धन तो देश वापसी कितना कर पाया इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं पर ऐसा प्रतीत होता है की देश के कुछ रसूखदार और सत्ता नशीन लोगों के पास काला धन जरूर खड़ा हो गया आतंकवाद में कमी लाना एक दुखद सपना "हाथी  के दांत खाने के और  दिखाने के और"  सा प्रतीत होता है जबकि महज  जनवरी 2018 से लेकर अक्टूबर तक ही लगभग 1000 बार युद्ध विराम और आतंकी हमले भारत माता के मस्तक पर हो चुके हैं आज 4 साल बीतने के पश्चात भी सरकार और सेना अध्यक्ष को यह कहते सुना जा सकता है कि कि अगर जरूरत पड़ी तो वह कठोर कार्रवाई और सर्जिकल स्ट्राइक २ करेंगे जबकि इस दौरान अनेकों माताओं के पुत्र वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं और सैकड़ों और हजारों बहनों के सुहाग उजड़ चुके हैं। जब इधर बीजेपी मुख्यालय तो  1400 करोड रुपए की लागत से तैयार हुआ है और देश का अन्नदाता किसान कर्ज से आत्महत्या ,बदहाली,और जगह जगह गोलियां और लाठियाँ खाने को मजबूर है और लगभग 44 00 करोड़ रुपए प्रधानमंत्री ने तो पार्टी के प्रचार प्रसार में ही खर्च कर दिए है हद तो तब हो गई जब कर्नाटक विधानसभा में साम दाम दंड भेद की नीति से राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए बीजेपी ने अन्य दलों के विधायकों को 100-100 करोड रुपए में खरीदने का प्रस्ताव दे डाला। अखबारों और अन्य स्रोतों से ज्ञात है कि बीजेपी चुनावी चंदा में नंबर दो पर रहा करती थी तो अचानक ही ऐसा क्या हुआ कि सत्ता  में आते ही पार्टी ने हजारों करोड़ रुपए मात्रा पार्टी मुख्यालय बनाने और प्रचार प्रसार में ही खर्च कर लिए इस चरमराती अर्थव्यवस्था में , जो देश की सर्वोच्च पार्टी की नीयत पर सवालिया निशान लगाती है की इतनी बड़ी राशि कहां से आई? क्या ये वाकई आतंकवाद का खात्मा था या निजी स्वार्थ के लिए संगठित लूट थी ?

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