प्रिय मित्र बोलो,
सरकार अपने कार्यालय के 4 साल पूरे कर चुकी है ,5 बजट प्रस्तुत कर चुकी है और उपलब्ध अवसरों को इस्तेमाल कर चुकी है अपनेअपने परिणाम दिखाने के लिए।
(यह पत्र पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने अपने लोक सभा साथियों और देशवासियों को लिखा है जिसमे उन्होंने देश की विभिन्न स्थितियों जिनसे पिछले चार सालों में देश बीजेपी सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2018 में गुजरा है उनके द्वारा जो मह्सूस किया गया है का वर्णन है जो केंद्र सरकार के कामकाज और नीतिओं पर सवाल उठाता है ये लेख 17 अप्रैल,2018 में एक अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में भी प्रकाशित हुआ था पर अंग्रेजी में )
मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोगों को अगले लोकसभा चुनावों के टिकट मिलेगी, अगर अनुभव की बात करें तो आप में से आधे लोगों को भी नहीं मिलेगी:यशवंत सिन्हा
हमने 2014 के लोकसभा इलेक्शंस में जीत के लिए बहुत कठोर परिश्रम किया है हम में से कुछ लोग यूपीए गवर्नमेंट के साशन के सामने संघर्ष करते रहे हैं संसद में और बाहर भी | जब से जब से वह सन 2004 में सत्ता में आई है जबकि कुछ दूसरे लोग इस कार्यालय के शासन के फलों का आनंद ले रहे थे अपने अपने राज्य में। हम बहुत ही ज्यादा प्रसन्न थे 2014 चुनावों के परिणामों से और हमने आशा की थी कि यह जीत एक नए और गौरव गौरवपूर्ण चरण की देश के इतिहास की शुरुआत होगी। हमने प्रधानमंत्री और उनकी टीम को खूब समर्थन दिया पूरे विश्वास के साथ। सरकार अब लगभग 4 साल अपने कार्यालय में पूरा कर चुकी है 5 बजेट्स दे चुकी और सभी अवसरों का इस्तेमाल कर चुकी है अपने परिणाम दिखाने के लिए। इसके अंत में ऐसा लगता है कि हम अपना रास्ता और वोट देने वालों का विश्वास खो चुके हैं ।
आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है बावजूद इसके जो दावे सरकार द्वारा किए गए हैं कि वह दुनिया की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था इस तरीके के नुकसान बैंकों में इकट्ठे नहीं करती जैसे कि हमने पिछले 4 सालों में किए हैं। एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में किसान परेशान नहीं होते युवा बिना नौकरियों के नहीं होते छोटे और मझोले व्यापार खत्म नहीं किए जाते हैं और जमा और निवेश इस तरीके से नहीं गिरता जितना भी पिछले 4 सालों में गिरा है । बुरा क्या है भ्रष्टाचार अपना बुरा सिर फिर दोबारा उठा चुका है और बैंक घोटाले एक के बाद एक सामने आ रहे हैं घोटाले करने वाले देश से किसी तरीके से भाग रहे हैं और सरकार असहाय होकर देख रही है।
आज और पहले से पहले से ज्यादा असुरक्षित हैं । बलात्कार बढ़ गए हैं प्रतिदिन बजाय इसके कि बलात्कारियों के साथ मजबूती से पेश आया जाए हम उनके गुनहगार बन गए हैं। कुछ मुद्दों में तो, हमारे अपने ही लोग सम्मिलित नजर आ रहे हैं। इससेइससे भी बुरा यह है कीकी अनुसूचित जाति एवं एवं जनजातियां जो जो हमारे समाज की सबसे कमजोर वर्ग हैं अत्याचार और असमानता ओं का शिकार हो रहे हैं जो पहले कभी नहीं हुए और उनको दी जाने वाली गारंटी संविधान संवैधानिक गारंटी आज खतरे में है।
हमारी संपूर्ण विदेश नीति यह यह दर्शाती है जिसमें लगातार विदेश भ्रमण प्रधानमंत्री द्वारा किया गया और विदेश के बड़े लोगों को गले से लगाया गया चाहे उन्होंने पसंद किया या नहीं। यह पूर्ण तरीके से बेकार रही और बुरी तरीके से हमारे अपने ही पड़ोस में फेल हो गई जांच आए ना हमारे साथ बुरा कर रहा था हमारे बहादुर जवानों द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक जो कि जो कि पा किस्तान के खिलाफ थी बेकार हो गई और पाकिस्तान लगातार आतंक भारत को भेजता रहा और हम ऐसा है वह कर देखते रहे। जम्मू और कश्मीर लगातार जलता रहा औरऔर आम आदमी हमेशा से ज्यादा पीड़ित हुआ।
आंतरिक प्रजातंत्र पूरी तरीके से विध्वंस खत्म हो गया दोस्तों मुझे बताओ किस संसदीय पार्टीयों के दौरान भी एक मेंबर ऑफ पार्लियामेंट अपने विचारों को नहीं कह पाए जैसा कि वह भूतकाल मैं करते रहे थे। और और और दूसरी पार्टी मीटिंग में संचार हमेशा एक तरफा ही रहा था। वह बोलते थे और तुम उनको सुनते थे। प्रधानमंत्री के पास तुम्हारे लिए समय नहीं था। पार्टी का हेड क्वार्टर एक कॉरपोरेट ऑफिस की तरह कैसे बन गया था जहां सीईओ(मुखिया) से मिलना असंभव था।
इससे भी महत्वपूर्ण खतरा अगर पिछले 4 सालों में उपजा हालांकि वह हमारे प्रजातंत्र के लिए था। लोकतांत्रिक संस्थाएं जिस तरीके से अपमानित और बदनाम की गई। संसद को एक मजाक बना दिया गया। प्रधानमंत्री एक बार भी अपने विपक्षी लीडर ओं के साथ भी नहीं बैठे जब वे बजट सेशन को सारांश कर रहे थे, एक रास्ता निकालने के लिए। औरऔर फिर उन्होंने उपवास रखा दूसरों पर आरोप मरने के लिए। प्रथम अर्थी पूर्ण बजट सेशन बहुत छोटा था मैंने उसे अटल बिहारी वाजपेई के दिनों से तुलना की थी जब उन्होंने हमें निर्देशित किया था कि वह विपक्ष के साथ तालमेल बिठाने और यह सुनिश्चित करें कि संसद अच्छी तरीके से चले। अतः अविश्वास प्रस्ताव और दूसरे डिस्कशन उस तरीके से हुए जिस तरीके से हुए जैसे विपक्ष चाहता था ।
चार वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी। न्यायधीश लगातार इसी बात का इशारा कर रहे थे कि हमारे देश में प्रजातंत्र खतरे में हैं।
आज ऐसा प्रकट होता है ऐसा लगता है की हमारी पार्टी का मुख्य उद्देश्य संचार माध्यमों जिनमें मुख्य मीडिया और सोशल मीडिया के द्वारा चुनाव जीतना है, तो यह बहुत ही ज्यादा भयंकर खतरे में अब है। मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोगों को अगले लोकसभा चुनावों के टिकट मिलेगी, अगर अनुभव की बात करें तो आप में से आधे लोगों को भी नहीं मिलेगी। आप के चुनाव जीतने के चांस अगर आप को टिकट मिल भी जाए तो अब पुराने हो चले हैं। पिछले लोकसभा चुनावों मैं बीजेपी कोई का 30 परसेंट वोट मिले थे जबकि 69 प्रतिशत मतदान उसके विपरीत हुआ था अगर विपक्ष एकजुट हो जाते हैं तो आप कहीं भी नहीं होंगे।
यह परिस्थिति अब आपसे मांग करती है कि आप देश हित में बोलें। मुझे यह जानकर खुशी है कि कम से कम 5 अनुसूचित जाति के एमपीज ने सरकार के प्रति अपना विपरीत रुख दिखाया है उन वादों के लिए जो उनके समुदाय से किए गए थे । मैं भी आपसे यह मांग करता हूं कि आप अपने विचार खुले तौर पर व्यक्त करें उन उन सभी मुद्दों पर जो हमें परेशान कर रहे हैं। अगर आप अब चुप रहते हैं तो आप अपने देश के साथ बहुत बड़ा अन्याय करेंगे और आने वाली पीढ़ियां भी हमें माफ नहीं करेंगी। यह आपका हक है की जो आज सरकार में हैं उन्हें ठहराया जाये जो आज देश को नीचे गिरा रहे हैं। देश का हित पार्टी पार्टी से बड़ा है बिल्कुल उसी तरीके से जिस तरीके से पार्टी का हित एक एक व्यक्ति से बड़ा है। मैं विशेष तौर पर आडवाणी जी और जोशी जी से अपील करता हूं किवी देश हित में खड़े हों और यह सुनिश्चित करें कि जिस तरीके से उन्होंने त्याग और बलिदान बलिदान दिया है , वह वह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और संरक्षित रहे और सही कदम समय पर उठाए जा सके।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ छोटी सफलताएं रही हैं परंतु बड़ी असफलताओं ने उन्हें पूरी तरीके से ढक दिया है। मैं आशा करता हूं कि आप सब इससे एक गंभीर विचार देंगे उन मुद्दों के बारे में जो मैंने इस पत्र में उठाए हैं। कृपया साहस उठाइए बोलिए और लोकतंत्र को एवं भारत को बचाइए।
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