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ई वी एम :जनता के वोट का मजाक?

ईवीएम या जनता के जनाधार का माखोल ?


यूं तो पिछले कई वर्षों से ईवीएम के द्वारा देश में विभिन्न राज्यों  में चुनाव होते रहें हैं  कर्नाटक राज्य में चुनाव हुए पर ऐसा कैसे हुआ सुबह के 2 घंटे बीतने के पश्चात भी 220 सीट में  से महज 160 -170  सीटों  के रुझान ही आ पाये  जबकि बीजेपी के कर्नाटक अध्यक्ष यदुरप्पा को  यह कहते हुए सुना की बीजेपी  130 सीटों के साथ बहुमत में आएगी और कर्नाटका में सरकार वे बनाएंगे  व  प्रधानमंत्री  को सरकार बनने के दौरान वह उन्हें लेने खुद दिल्ली जायेंगे बड़ा हास्यस्पद है| ना तो  जनता, ना ही  विपक्ष में विराजमान जन  सेवक जो अपने आप को जनता सेवक होने का दावा करते हैं व राजनेता  हैं , अवगत थे कि उस समय कर्नाटक में क्या चल रहा था ? क्या  बैलट पेपर से चुनाव हुए थे या वोटों वाले बक्सों की चाबियाँ ही कहीं खो गयी थीं | पूर्व में गुजरात ,जहाँ सूरत की लगभग १५ सीटें मतगणना शुरू होने के बाद भी कुछ घंटों तक होल्ड पर थीं ,में हुए चुनावों के दौरान भी चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने चुनाव के दोरान चुनाव आयोग दिल्ली को पत्र लिखकर इस बात की आशंका जताई थी कि जिस दिन मतगणना हो उस दिन  उसके आसपास के जितने भी  दूरसंचार  के टावर मतगणना के क्षेत्र  में लगे हुए  हैं उन्हें उस दिन बंद रखा जाए क्योंकि उससे ईवीएम हैक होने की संभावनाएं हैं |जबकि दूसरी और कुछ प्रतिष्ठित कंपनियों के टावर ही राष्ट्रीय राजमार्गों और सरकारी सडकों के बीचों बीच लगे ही एक सवालिया निशान उठा रहे हैं ,उधर  देश की पूर्ण बहुमत सरकार देश के  डिजिटल होने का दावा करती है पर पर फिर कुछ लोग सिस्टम को धता बता अन्य कुछ और कभी ईवीएम हैक कर लेते हैं कभी हजारों करोड़ों रुपए बैंक की के डिजिटल  प्रणाली प्रणाली से चुरा कर ले जाते है  देश कि कुछ पार्टियां चुनाव  को बैलेट पेपर से करवाने के लिए एकमत हो चुके हैं जबकि चुनाव आयोग ईवीएम मशीनों से ही चुनाव करवाने को दृढ़ है । जबकि विश्व व अन्य देश जो विकसित हैं चुनावों को बैलेट पेपर से ही करवाते आ रहे हैं।  जनता अपना कीमती वोट जिस किसी को भी दे रही है क्या वो वहां पहुँच रहा है या नहीं ?कौन सुनिश्चित करेगा की लोकतान्त्रिक देश की वोट प्रणाली सही हो और पूंजीवाद इस देश की लोकतान्त्रिक संस्थायों और शक्तियों को खोखला और बोना न बना दे | ये तो जनता के साथ सरासर धोखा और मजाक ही होगा  |

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