पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने अपने सम्बोधन "बोलो आप बोलते क्यों नहीं "में 2014 से चल रही सरकार के कामकाज और पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ पदाधिकारियों के प्रति प्रधानमंत्री के व्यवहार एवं रवैये पर सवाल उठाये थे उन्होंने ये भी कहा था की प्रधानमंत्री से मुलाकात लिए समय प्राप्त करना ऐसा सा हो गया है जैसे एक कॉर्पोरेट (कंपनी) के मालिक से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट याचना करना पत्रकारों से तो कुछ वर्षों से ही परहेज किया रहा है और अब इतना बड़ा बजट केवल प्रचार प्रसार पर ? अगर सरकार ने अच्छा प्रदर्शन हर क्षेत्र और हर वर्ग के लिए किया है तो करोड़ों रुपयों को विज्ञापन में स्वाह करने की जरूरत क्या है ?ये देश किस ओर जा रहा है नोटेबंदी,राफेल पर तो भ्रष्टाचार के आरोप मोदी सरकार पर लगते ही रहे हैं ?करोड़ों के स्टेचू बनाना, बीजेपी के प्रचार प्रसार पर लगभग 4400 करोड़ रुपये को खर्च करना ,राजस्थान में रैली पर भीड़ जुटाने के लिए करोड़ों का खर्च पर किसान ,कर्मचारियों ,गृहणियों ,मजदूर , छोटे व्यापारियों व हर वर्ग को दुखी रखना और अनदेखी करना कौन सा सुशासन है, कौन सा लोकतंत्र है आम जनता के लिए है या देश के चंद पूंजीपतियों के लिए ?ये जनता पूछती है ?और ,क्या देश पैसे की इस नुमाइश के बलबूते पूजीपतियों की सरकार चाहता है या हिन्द राष्ट्र की हिन्द सरकार ? सही मायनों में एक लोकतान्त्रिक सरकार ,ना की तानाशाही |
पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने अपने सम्बोधन "बोलो आप बोलते क्यों नहीं "में 2014 से चल रही सरकार के कामकाज और पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ पदाधिकारियों के प्रति प्रधानमंत्री के व्यवहार एवं रवैये पर सवाल उठाये थे उन्होंने ये भी कहा था की प्रधानमंत्री से मुलाकात लिए समय प्राप्त करना ऐसा सा हो गया है जैसे एक कॉर्पोरेट (कंपनी) के मालिक से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट याचना करना पत्रकारों से तो कुछ वर्षों से ही परहेज किया रहा है और अब इतना बड़ा बजट केवल प्रचार प्रसार पर ? अगर सरकार ने अच्छा प्रदर्शन हर क्षेत्र और हर वर्ग के लिए किया है तो करोड़ों रुपयों को विज्ञापन में स्वाह करने की जरूरत क्या है ?ये देश किस ओर जा रहा है नोटेबंदी,राफेल पर तो भ्रष्टाचार के आरोप मोदी सरकार पर लगते ही रहे हैं ?करोड़ों के स्टेचू बनाना, बीजेपी के प्रचार प्रसार पर लगभग 4400 करोड़ रुपये को खर्च करना ,राजस्थान में रैली पर भीड़ जुटाने के लिए करोड़ों का खर्च पर किसान ,कर्मचारियों ,गृहणियों ,मजदूर , छोटे व्यापारियों व हर वर्ग को दुखी रखना और अनदेखी करना कौन सा सुशासन है, कौन सा लोकतंत्र है आम जनता के लिए है या देश के चंद पूंजीपतियों के लिए ?ये जनता पूछती है ?और ,क्या देश पैसे की इस नुमाइश के बलबूते पूजीपतियों की सरकार चाहता है या हिन्द राष्ट्र की हिन्द सरकार ? सही मायनों में एक लोकतान्त्रिक सरकार ,ना की तानाशाही |

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