देश की जनता ने ये अपेक्षा की थी कि प्रधानमंत्री जब देश को संबोधित करेंगे तो पीएम केयर्स फंड में जो देश भर से रुपया जमा आया है उसके बारे में बताएंगे और आंकड़ों को जारी कर एक ठोस योजना के बारे में बताएंगे पर ऐसे में देश की एक बड़ी जनसंख्या को उस समय धक्का लगा जब प्रधानमंत्री ने सिर्फ मोमबत्ती , दीया, टॉर्च और मोबाइल की लाइट जला अधेरे से उजाले का विकल्प बताया।जो लोगों को एक मनोवैज्ञानिक उपचार मात्र लगा व मोमबत्तियों के जलने से करोड़ों रुपए की बर्बादी लगा व बाबाओं के सुझाए टोटके मात्र लगा। जनता के गणितानुसर अगर आधी जनसंख्या भी भावनाओं में मोमबत्ती का इस्तेमाल करे तो 67.5 *5= 337.5 करोड़ रुपए बनेगा ऐसी चर्चा भी सोशल मीडिया में दिखीं। आरोप प्रत्यारोप का दौर चला पर सभी को अपने अपने तर्क को बीच में छोड़कर संतुष्ट होना पड़ा। जहां विकसित राष्ट्र और बड़े बड़े वैज्ञानिक कोरोना वायरस की वैकल्पिक दवाई अभी ढूंढ़ नहीं पाए और आने में वर्षों लग जाने की बात कर रहे है ऐसे में कोरोना को महज रोशनी से डराना हास्यास्पद और बचकाना तक बता रहे हैं लोग।
लोगों ने आशा की थी कि प्रधान सेवक सरकार में चल रहे प्रयासों, और राज्य को केंद्र द्वारा प्रदान की जाने वाली घोषणाओं से अवगत करवाएंगे। पर दिया जलने से पहले उनके अरमानों की बत्ती जल गई। और एक बार जनता के बीच फिर केंद्र सरकार द्वारा बरगलाने का मुद्दा गरमा गया।
राजनीतिक गलियारों में भी ये चर्चा रही कि चूंकि ये देश के प्रधानमंत्री ने कहा है तो बहुत लोग इसका अनुसरण करते नजर आएंगे पर जहां देश की जनता के घरों के चूल्हे ना जलने का संकट हो वहां इस तरह की अपील का औचित्य क्या है? क्या ऐसे लड़ेंगे कोरोना से?
महाराष्ट्र के आवास मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने आलोचना की
https://hindi.news18.com/news/maharashtra/aurangabad-maharashtra-minister-jitendra-awhad-says-he-will-not-lit-up-candles-2984923.html




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