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आज जब सब लॉकडाउन है ,जन आम का घर पर रहना और टाइम पास करने का टीवी एक मात्र जरिया है तो यही मीडिया अपने दर्शकों के आंकड़े दिखा दावे कर रहीं है की उन सा दूर दूर तक कोई नहीं। देश के मुख्य मुद्दों से भटकाने का काम कर रही है। कोरोना के आंकड़ों का केंद्रीयकरण कर देश के अन्य धर्मों पर छींटाकशी कर देश को गुमराह कर रही हैं । जबकि उसी मार्च माह में गुजरात के अंदर एक प्रोग्राम में उसी दौर में एक करोड़ लोगों का अमेरिका देश के विदेशी महमानो के साथ इकठ्ठा होना जिसके अंदर कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा आंकड़े हैं , क्या कोरोना जैसी संक्रमण कों बढ़ावा नहीं मिला होगा । क्यूंकि अक्सर राजनैतिक रैली में देश भर से कार्यकर्ता और नेता भाग लेते हैं। देश की सत्ता से सवाल पूछने की बजाय विपक्ष से सवाल दागे जा रहें हैं, क्या यह सही है?देश के असल मुद्दों से मुंह फेर सिर्फ सरकार के पक्ष संबंधी बातें कर राजनेता, विपक्षी पार्टियों और विशेष समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है। सरकार द वायर जैसे संगठनों पर सही समाचार चलाने को लेकर दवाब बना रही है, मुकद्मे किए जा रहें है।देश के विपरीत विचारधारा या यूं कहें कि पत्रकारिता को एक पेशे और मिशन की तरह काम करने वाले पत्रकारों को नौकरी से निकलवाने जैसी कार्यवाहियां हो चुकी हैं। भारतीय मीडिया के इस बदलते स्वरूप ने देश में ही नहीं वरन् विदेशों में ही सुर्खियां बटोरी हैं। अपने स्टूडियो में चिल्ला चिल्ला कर बोलने और हर विरोधी आवाज़ को एक निश्चित तरीके से दबाने का हुनर स्टूडियो के बाहर फुस्स होता देखा गया है।हाल ही में अर्णब गोस्वामी से विमान में कुणाल कमरा का प्रकरण पुराना नहीं हुआ है।पर इसके बाद भी इन न्यूज स्टूडियो से नफ़रत और जहर का विस्फोट कम नहीं हुआ है ? इसी के चलते विभिन्न राज्यों में इस चाटुकार मीडिया के संपादकों पर मुकद्मों की झड़ी लग गई है। समाचार और उसकी जानकारी और उसके शीर्षक सभी पेड लगते हैं।
बस अब सोशल मीडिया के ऊपर अंकुश अगले चुनावों पूर्व कभी भी लग सकता है क्यूंकि यही है जिसके माध्यम से देश काफी हद तक सही समाचारों का आदान प्रदान , और पहुंचाने का काम कर रहा है।
बस यही छोटा सा परिचय है हमारे देश की गोदी मीडिया का , सच से परे।
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