पूर्व प्रधानमंत्री माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के शुभ हस्तों से लिखी हुई एक अति सुन्दर कविता जो
आज के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक बैठती है
श्रीगंगानगर 24 अगस्त
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द न आएंगे |
कब तक आस लगाओगी तुम
बिके हुए अख़बारों से |
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुःशाशन दरवारो से |
स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे |
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द ना आएंगे |
कल तक केवल अँधा राजा
अब गंगा बहरा भी है |
होंठ सिल दिए जनता के
कानो पर पहरा भी है |
तुम्ही कहो ये अश्रु तुम्हारे
किसको क्या समझायेंगे |
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द न आएंगे |
छोडो मेहंदी भुजा सम्भालो
खुद ही अपना चीर बचा लो |
ध्यूत बिठाये बैठे शकुनि
मस्तक सब बिक जायेंग |
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द न आएंगे |
*अटल बिहारी वाजपेयी
आज के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक बैठती है
श्रीगंगानगर 24 अगस्त
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द न आएंगे |
कब तक आस लगाओगी तुम
बिके हुए अख़बारों से |
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुःशाशन दरवारो से |
स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे |
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द ना आएंगे |
कल तक केवल अँधा राजा
अब गंगा बहरा भी है |
होंठ सिल दिए जनता के
कानो पर पहरा भी है |
तुम्ही कहो ये अश्रु तुम्हारे
किसको क्या समझायेंगे |
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द न आएंगे |
छोडो मेहंदी भुजा सम्भालो
खुद ही अपना चीर बचा लो |
ध्यूत बिठाये बैठे शकुनि
मस्तक सब बिक जायेंग |
उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो
अब गोविन्द न आएंगे |
*अटल बिहारी वाजपेयी
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