पेड न्यूज़ से भड़काने का चलन बढ़ा
जब एक राष्ट्रीय पार्टी के सम्मेलन और रैलियों के अंश एक सांसद द्वारा संचालित मीडिया में 2014 और कुछ वर्षों से नहीं दिखाये जाते थे। तब तक मीडिया का किसी राष्ट्रीय पार्टी की तरफ सरकना या यूँ कहूं की गोदी मीडिया का चलना कोई गलत कार्य नहीं था ,पर जैसे ही मास्टर स्ट्रोक में चैनल के मालिक ने नहीं एक पत्रकार ने देश की सही-सही परिस्थितियों को उकेरा तो देश की उच्च सत्ता बैरी हो चली उसे नौकरी से निकाला गया, गलत तो उसने कुछ प्रस्तुत किया नहीं था सिर्फ 2014 से 2018 तक का फर्क देश को समझाने का प्रयास किया था वह अपने फर्ज को बखूबी निभा रहे थे निभाने का प्रयास कर रहे थे, पर वह कौन देश द्रोही थे जो इस बात को पचा नहीं पा रहे थे। क्या पत्रकारिता भी न्यायपालिका,कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की तरह नेताओं की संकीर्ण मानसिकता और नेताओं की कूटनीति, नफरत की राजनीति और अराजकतावादी ताकतों का शिकार हो जाएगी?
एक उच्च जेड श्रेणी का मीडिया होने के बावजूद उसके कार्य ,अधिकांश पत्रकार अगर सत्ता में काबिज पार्टी के इशारे और नियंत्रण में कार्य करेंगे और वही कहानियां गढ़ेंगे तो ऐसे मीडिया पर क्या सवाल उठाना गलत होगा।क्या उससे यह कहना गलत होगा कि राजनीति और राजनीतिक पार्टियों के लिए उसने अपने ईमान धर्म और मान को देश के लिए न्यौछावर कर दिया है। कुछ वर्षों से देखने में आया है कि मीडिया को पूंजीपति और बड़े लोग प्रभावित करते रहे हैं पर अब तो हो रहा है मीडिया जहर, अपशब्द ,संप्रदायिकता जैसे विषय प्रसारित करने मैं इन सत्ता नशीं लोगों की कार्यस्थली सी प्रतीत होता है। जिन मुद्दों का 100 %प्रचार प्रसार करना है,जिन मुद्दों को मीडिया ने बाहरी पार्टियों के इशारे पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर चलाना है , उन समाचारों को बार-बार कभी कभी सुबह शाम एक दिन पहले शाम को तो दूसरे दिन सुबह बार बार प्रसारित करना एक राजनीतिक कारण सा दिखता है पर सबको नहीं !जबकि प्रिंट मीडिया तो न्यूज़ के बासी और ताजी खबर का फर्क आज भी भलीभांति समझता है और ऐसे मुद्दों मुद्दों की दोबारा पुनरावृति नहीं करता। एक समाचार को एक ही बार प्रसारित करते हैं। अपनी झूठी टी आर पी को बढ़ाने के लिए एक पखवाड़े तक एक ही समाचार पर केंद्रित करते हैं जबकि उसी समय में अन्य अतिमहत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को दरकिनार कर ऐसा किया जाता है।उदाहरणार्थ बॉलीवुड अभिनेत्री श्रीदेवी के निधन के दौरान।
देश को विकास की असल मुद्दों से भटकाना और ऐसे मुद्दों पर बहस और कटाक्ष में छोड़ देना कोई आम बात नहीं है यह फेक न्यूज मनगढंत समाचारों के माध्यम से रोजाना हो रहा है एक राष्ट्रीय पार्टी की गलती को तिल का पहाड़ बना देना और दूसरी पार्टी और दूसरी राष्ट्रीय पार्टी की गलतियों को छुपाना ,सरकार के किसी भी अनर्गल टिप्पणियों को चुन चुनकर प्रसारित करना एक तरीके का सरकना ही है हमारे देश में तो ऐसा हो रहा है कि विपक्ष जिन मुद्दों पर आवाज उठाता है उसका जवाब न देकर सरकार अपने दायित्व और जिम्मेदारियों से भागती है ,विपक्ष से ही प्रश्न कर उस मुद्दे को भटका देती है या श्रोताओं और दर्शकों को नई बहस देकर अहम मुद्दे से ही भगा देती है। जिसे मीडिया भी बखूबी भुना रहा है वह आपस में लड़ने को तो तैयार है पर अपनी महत्वाकांक्षाओं और लक्ष्यों के चलते कार्यपालिका व्यवस्थापिका व न्यायपालिका जो राजनेताओ द्वारा अधिक से अधिक प्रभावित उनके अपने निजी स्वार्थ के लिए की जा रही है, पर बोलने को तैयार नहीं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपना कार्य अपना अस्तित्व ,अपनी गरिमा बरकरार रखने को तत्पर नहीं। ।
मीडिया के कुछ ऐसे समूह जो सरकार से सीधे-सीधे मिले हैं या पद लाभ लिए हुए हैं दूसरों के द्वारा तैयार की गई भ्रामक खबरों को परोसने का कार्य कर रहे हैं । चुनाव के मैदान में सोशल मीडिया और पेड समाचारों की बाढ़ सी आई हुई है पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर लोकतंत्र को सही चलाने का स्वांग कर रही हैं। ऐसा करने के लिए समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हैडलाइंस का सहारा तक लेने से नहीं चूक रहे हैं। अगर इस बीच कोई ठगा जा रहा है तो वह है आमजन, अगर किसी के साथ मजाक हो रहा है तो वह है लोकतंत्र और उसमे निहित शक्तियां। कई परिस्थितियों में तो आमजन भी अंधभक्त हो चला है उसे भी अपने नेताओं के द्वारा किए गए सही और गलत का सही सही आकलन ही नहीं है जबकि चंद राजनेताओं के दांत हाथी जैसे हैं, जो दिखाने के और हैं खाने के और । अगर मीडिया का ही राजनीतिकरण हो जाएगा तो लोकतंत्र में जनता की आवाज को कौन उठाएगा विपक्ष जिसके पास लोकतांत्रिक शक्तियां नहीं ,पार्टियां जो सरकारें बनाकर सत्ता में आ रही हैं उन पर कौन नजर रखेगा कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार जो राजनीतिज्ञों और राजनीति की ही देन है इनकी पोल कौन खोलेगा कौन खोलेगा इनकी कूट नीतियों कि कलई और कौन उठाएगा देश व समाज में व्याप्त असल मुद्दे।अतः मीडिया साथियों , देशवासियों जागो उठो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत, लोकतंत्र तुम्हे ही पुकार रहा है।
एक उच्च जेड श्रेणी का मीडिया होने के बावजूद उसके कार्य ,अधिकांश पत्रकार अगर सत्ता में काबिज पार्टी के इशारे और नियंत्रण में कार्य करेंगे और वही कहानियां गढ़ेंगे तो ऐसे मीडिया पर क्या सवाल उठाना गलत होगा।क्या उससे यह कहना गलत होगा कि राजनीति और राजनीतिक पार्टियों के लिए उसने अपने ईमान धर्म और मान को देश के लिए न्यौछावर कर दिया है। कुछ वर्षों से देखने में आया है कि मीडिया को पूंजीपति और बड़े लोग प्रभावित करते रहे हैं पर अब तो हो रहा है मीडिया जहर, अपशब्द ,संप्रदायिकता जैसे विषय प्रसारित करने मैं इन सत्ता नशीं लोगों की कार्यस्थली सी प्रतीत होता है। जिन मुद्दों का 100 %प्रचार प्रसार करना है,जिन मुद्दों को मीडिया ने बाहरी पार्टियों के इशारे पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर चलाना है , उन समाचारों को बार-बार कभी कभी सुबह शाम एक दिन पहले शाम को तो दूसरे दिन सुबह बार बार प्रसारित करना एक राजनीतिक कारण सा दिखता है पर सबको नहीं !जबकि प्रिंट मीडिया तो न्यूज़ के बासी और ताजी खबर का फर्क आज भी भलीभांति समझता है और ऐसे मुद्दों मुद्दों की दोबारा पुनरावृति नहीं करता। एक समाचार को एक ही बार प्रसारित करते हैं। अपनी झूठी टी आर पी को बढ़ाने के लिए एक पखवाड़े तक एक ही समाचार पर केंद्रित करते हैं जबकि उसी समय में अन्य अतिमहत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को दरकिनार कर ऐसा किया जाता है।उदाहरणार्थ बॉलीवुड अभिनेत्री श्रीदेवी के निधन के दौरान।
देश को विकास की असल मुद्दों से भटकाना और ऐसे मुद्दों पर बहस और कटाक्ष में छोड़ देना कोई आम बात नहीं है यह फेक न्यूज मनगढंत समाचारों के माध्यम से रोजाना हो रहा है एक राष्ट्रीय पार्टी की गलती को तिल का पहाड़ बना देना और दूसरी पार्टी और दूसरी राष्ट्रीय पार्टी की गलतियों को छुपाना ,सरकार के किसी भी अनर्गल टिप्पणियों को चुन चुनकर प्रसारित करना एक तरीके का सरकना ही है हमारे देश में तो ऐसा हो रहा है कि विपक्ष जिन मुद्दों पर आवाज उठाता है उसका जवाब न देकर सरकार अपने दायित्व और जिम्मेदारियों से भागती है ,विपक्ष से ही प्रश्न कर उस मुद्दे को भटका देती है या श्रोताओं और दर्शकों को नई बहस देकर अहम मुद्दे से ही भगा देती है। जिसे मीडिया भी बखूबी भुना रहा है वह आपस में लड़ने को तो तैयार है पर अपनी महत्वाकांक्षाओं और लक्ष्यों के चलते कार्यपालिका व्यवस्थापिका व न्यायपालिका जो राजनेताओ द्वारा अधिक से अधिक प्रभावित उनके अपने निजी स्वार्थ के लिए की जा रही है, पर बोलने को तैयार नहीं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपना कार्य अपना अस्तित्व ,अपनी गरिमा बरकरार रखने को तत्पर नहीं। ।
मीडिया के कुछ ऐसे समूह जो सरकार से सीधे-सीधे मिले हैं या पद लाभ लिए हुए हैं दूसरों के द्वारा तैयार की गई भ्रामक खबरों को परोसने का कार्य कर रहे हैं । चुनाव के मैदान में सोशल मीडिया और पेड समाचारों की बाढ़ सी आई हुई है पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर लोकतंत्र को सही चलाने का स्वांग कर रही हैं। ऐसा करने के लिए समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हैडलाइंस का सहारा तक लेने से नहीं चूक रहे हैं। अगर इस बीच कोई ठगा जा रहा है तो वह है आमजन, अगर किसी के साथ मजाक हो रहा है तो वह है लोकतंत्र और उसमे निहित शक्तियां। कई परिस्थितियों में तो आमजन भी अंधभक्त हो चला है उसे भी अपने नेताओं के द्वारा किए गए सही और गलत का सही सही आकलन ही नहीं है जबकि चंद राजनेताओं के दांत हाथी जैसे हैं, जो दिखाने के और हैं खाने के और । अगर मीडिया का ही राजनीतिकरण हो जाएगा तो लोकतंत्र में जनता की आवाज को कौन उठाएगा विपक्ष जिसके पास लोकतांत्रिक शक्तियां नहीं ,पार्टियां जो सरकारें बनाकर सत्ता में आ रही हैं उन पर कौन नजर रखेगा कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार जो राजनीतिज्ञों और राजनीति की ही देन है इनकी पोल कौन खोलेगा कौन खोलेगा इनकी कूट नीतियों कि कलई और कौन उठाएगा देश व समाज में व्याप्त असल मुद्दे।अतः मीडिया साथियों , देशवासियों जागो उठो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत, लोकतंत्र तुम्हे ही पुकार रहा है।

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