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क्या मीडिया में आपातकाल?

ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की जनता की आवाज़ को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कैसे दबा रही है या उसपे दवाब है।पर ये कहना ही होगा की बीते कुछ वर्षों में हुए घटनाक्रम और समाचारों का व्यवसायीकरण हो चुका है।बहुत बार समाचारों को दबाने का दोष केंद्र सरकार पर लगा है।पर देश और जनता के मुख्य मुद्दों को दबाने का समझौता इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से कर रही है इस पर उसे गोदी मीडिया के नाम से भी नवाजा गया है। आजकल चैनलों द्वारा केंद्र सरकार के समाचारों और महिमा मंडन का मैनेजमेंट करना, जनता और सामाजिक मुद्दों को समाचारों से गायब कर देना , अन्य राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों के कार्यक्रमों को अपने चैनल पर नहीं चलाना और उन्हें नजरअंदाज करना काफी वर्षों से चल रहा है , आम आदमी और दर्शकों को तो ये पता भी नहीं हैं की उन्हें क्या और क्यों दिखाया जा रहा है। कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा ये दर्शन भी समय समय पर करवाया गया है की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा ऐसा और वैसा किया जा रहा है पर मीडिया है की उसने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का ही पूंजीपतियों और सत्तानाशीन लोगों से मिलकर निकाला निकाल दिया है।जब कुछ  बुद्धिजीवियों ने इसक...